शायर ए ख्याल - कविताएं

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             शायर ए ख्याल एक शायर या एक लेखक किस तरह सोचता है? ऐसा क्या होता है उसके पास के वो किसी भी चीज़ से प्रभावित होता है और उसको एक अलग अंदाज़ में कागज़ पे उतार देता है? इसे मैं ऊपरवाले की मेहरबानी मानता हूं के उसने मुझे ये कला बख्शी और इस काबिल बनाया के मैं अपने ज़हन के अंदर जा कर हर बार कुछ नया निकाल ले आऊं। ज़िन्दगी में एक एहसास ही काफ़ी होता है कुछ कर जाने के लिए। मैैं भी अकेलेपन के गहने दश्त में कई रोज़ गुमनाम रहा तब मैंने इस कला को अपने अंदर से ढूंढ़ा। वो मेरी पहली कविता भी रात्रि के उस अंधकार में निकली जब नींद का मैं गुलाम ना था। मुझे मेरे सपने भी एक कविता की तरह दिखते थे। अपने सपनों और उसमे पैदा होती व्यथाओं पर भी एक कविता लिखी थी -                     सपने        ये उतावले सपने,        ये ही मेरे अपने,      ...

कविता - शहर

क्या होता है जब आप अपने अरमानों के लिए, अपने सपनों के लिए अपने शहर से दूसरे शहर जाते है? हम कुछ दिन तो ज़रूर खुश रहते है, वो नए शहर की महक से, उसकी धूप से, उसकी गलियों से, उसके हर रूप से पर आखिरकार एक रात आप जब अकेले सोच रहे होते है तो आपको अपना घर याद आता है, अपने मां बाप याद आते है, अपना शहर याद आता है।
ऐसे ही इक रोज़ मेरे दोस्त ' आशिक' का मुझे फोन आया, वो बहुत उम्दा गायक है, मेरे घनिष्ठ मित्रों में से एक है और वो भी मेरी तरह दिल्ली शहर में एक परीक्षा की तैयारी के लिए आया था पर उस फोन कॉल पे वो काफ़ी परेशान था और मुझसे कहता है, "यार रितेश, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है इस शहर में, कुछ लिखो इसपे, एक गाना बनाएंगे हम"
मैंने उनसे पूछा के उनको क्या महसूस हो रहा है और सब जानने के बाद अपनी ये कविता जिसका नाम "शहर" है लिखी।

                 शहर

 इस शहर से ना मैं वाबस्ता,
 कहां ले जा रहा है ये रास्ता,
 यहां नींद की तंगी,
 इंसान बड़े जंगी,
 ईमान ना है यहां सस्ता,
 कहां ले जा रहा है ये रास्ता।

 जुनून की यहां कमी हैं,
 पर सारे यहां धनी हैं,
 मुझमें ही क्या कमी हैं,
 क्यूं मेरी ज़ेब में तनी हैं?
 भटकूं अकेले लिए सपनों का बस्ता,
 कहां ले जा रहा है ये रास्ता।

 फांसले हज़ार हो चले हैं,
 हम सफ़र में बेज़ार हो चले हैं,
 ना मां की हसी साथ हैं,
 ना बाप की वो सलाह,
 ना सुरों में वो मिठास,
 ना उस मंज़िल की प्यास,
 मशगूल हो चला हूं मैं,
 शहर की इस भीड़ में,
 रूह तक हो चली है खस्ता,
 कहां ले जा रहा है ये रास्ता।

 - रितेश।

  ये कविता जब अपने दोस्त को भेजी तो उनकी प्रतिक्रिया से काफी खुशी हुई, उम्मीद करता हूं यहां भी सभी लोगो को ये पसंद आएगी।




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